Saturday, April 03, 2010

पंजाब में अब हिंदी में भी 'सूचना का अधिकार'





















'सूचना का अधिकार' कानून लागू होने के ढाई साल बाद भी पंजाब में 'आरटीआई एक्ट' महज मजाक था। 'आरटीआई एक्ट' के तहत यहाँ न तो हिंदी में आवेदन स्वीकार किये जाते थे और न ही हिंदी में जानकारी प्रदान की जाती थी. ये स्थिति तब थी, जबकि 60 फ़ीसदी लोग यहाँ हिंदी भाषी है. पंजाब सरकार के आदेश पर राज्य के सभी सरकारी दफ्तरों में इस आशय के 'सूचना पट' लगा दिए गये थे कि 'आरटीआई एक्ट' के तहत सिर्फ 'पंजाबी और अंग्रेजी' में ही आवेदन स्वीकार किये जायेंगे और इन्हीं भाषाओं में सूचना दी जाएगी. 'आरटीआई एक्ट' के तहत हिंदी में सूचना न देने से पंजाब सरकार की मंशा हिंदी को दोयम दर्जे की भाषा समझने और 'आरटीआई एक्ट' की धार कुंद करने की मालूम पड़ती थी. वर्ष 2008 की बात है. दैनिक भास्कर लुधियाना में बतौर रिपोर्टर प्रशासनिक बीट कवर करता था. डिप्टी कमिश्नर के आफिस में एक सूचना के लिए हिंदी में आवेदन किया, जिसे लेने से मना कर दिया गया. हिंदी में आवेदन स्वीकार न करने से जिला प्रशासन द्वारा आफिसियल लैग्वेज एक्ट 1963 , भारतीय संविधान की धारा 350 और आरटीआई एक्ट की धारा 6 (1) का उल्लघन हुआ. इस बात को आधार बनाकर खबर लिखी. खबर छपी तो व्यापक जनप्रतिक्रिया आई. हमारे तत्कालीन समाचार संपादक कुमार अभिमन्यु जी और स्थानीय सम्पादक राजीव सिंह जी के निर्देश पर इस खबर को पंजाब की 60 फीसदी हिंदी भाषी जनता के लिए मुद्दा बना दिया. पहली खबर छपने के बाद लुधियाना के डीएम सुमेर सिंह गुर्जर से हिदी में भी जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए बात की तो डीएम ने साफ मना कर दिया. फिर क्या था. डीएम ने जैसा जवाब दिया, वैसा ही लिख दिया. अगले दिन डीएम का जवाब छपने के बाद खूब हंगामा हुआ. जनता ने इसे अपना मुद्दा बना लिया. इस मसले पर करीब दर्जन भर खबरें छपीं. खबर को आधार बना कर एक एनजीओ ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर दी. कोर्ट में सुनवाई के दौरान डीएम ने हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगी, जबकि पंजाब सरकार को तुरंत हिंदी लागू करने का आदेश दिया गया.