Saturday, April 13, 2013

पुलिस का सूचना तंत्र कितना मजबूत

कल्पना कीजिए। आप सड़क पर या अपने ही घर पर किसी मुसीबत में फंसे हैं। मुसीबत भी  ऐसी कि आपकी जान पर बनी हो। कुछ सूझ न रहा हो। आप बचाओ बचाओ की आवाज भी लगाते हैं, लेकिन मदद को कोई आगे भी नहीं आ रहा। कोई चोर, लुटेरा आपनी जान अथवा माल पर निगाह गड़ाए हो। कोई शोहदा आपकी इज्जत को तार तार करना चाहता हो। जिंदगी और मौत के बीच का फासला घट रहा हो। ऐसे में अचानक आपको याद आती है पुलिस की। आपके पास कुछेक मिनट का ही वक्त है और मौका पाकर तुरंत नजदीक के थाने में अथवा वहां के थानेदार को फोन लगाते हैं। इस उम्मीद से कि पुलिस को सूचना मिलते ही वह आपकी मदद में फौरन मौजूद होगी। लेकिन आपकी सांसें तब और अटक जाती हैं जब पुलिस को फोन करने पर कोई रिस्पॉस नहीं मिलता। थाने में कई बार फोन करने के बाद भी वहां से इंगेज टोन आती है। या फिर बीप बीप की आवाज के साथ ही फोन कट जाता है। कई बार तो फोन की घंटी बजती रहती है लेकिन कोई उठाता नहीं है। इन हालात में आप बेबस लाचार और असहाय महसूस करते हैं। अपराधी घटना को अंजाम देकर आराम से निकल जाता है। इन हालात में कौन है जो पुलिस और सिस्टम को नहीं कोसेगा। बीते कुछ महीनों में जिले में अपराध का ग्राफ अचानक बढ़ा है। लगभग हर दिन दो तीन चोरियां, और इतनी ही लूट की वारदातें हो रही हैं। दबंगों का आतंक है। कुछ मामले सामने आ रहे हैं कुछ दब जा रहे हैं। ऐसे में अमर उजाला ने इस बात की पड़ताल की आखिर जिले के थाने कितने सक्रिय हैं। पुलिस का सूचना तंत्र कितना मजबूत है। नेताओं के आगे पीछे डोलने वाले जिले के आला अधिकारी आम आदमी की हिफाजत के लिए अपनी पुलिसिंग ठीक करने में कितने तत्पर हैं। पेश है रिपोर्ट।

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