Monday, April 22, 2013

फिल्म: राजनीति में बाहुबलियों के दखल की कहानी है बुलेट राजा

क्वारी नदी के पास का भयानक बीहड़। ४४ डिग्री तापमान। छांव के लिए दूर दूर तक कहीं कोई पेड़ नजर नहीं आता। दिखते हैं तो सिर्फ ऊंचे नीचे पहाड़ीनुमा टीले। इसी पहाड़ीनुमा रपटीले कंटीले बीहड़ में एक आईपीएस अधिकारी अपहरणकर्ताओं की तलाश कर रहा है। दशकों तक डकैतों और माफियाओं की शरण स्थली रहे इसी बीहड़ांचल में यूपी के एक बाहुबली ने भी अपनी पकड़ छुपा रखी है। १० मिनट बाद कट की आवाज आती है और सीन ओके होता है। रील लाइफ का हिस्सा बन रहा यह सीन कभी बीहड़ांचल की रीयल लाइफ हुआ करता था। हासिल, गैंग आफ वासेपुर और पानसिंह तोमर जैसे रीयल लाइफ कैरेक्टर पर फिल्में बना चुके प्रख्यात फिल्म डायरेक्टर तिग्मांशू धूलिया एक बार फिर बीहड़ी प्रष्ठभूमि पर काम कर रहे हैं। तिग्मांशू इलाहाबाद के रहने वाले हैं और हिंदी फिल्म जगत का चमकता हुआ सितारा हैं। इटावा के बीहड़ों में इनकी मल्टीस्टारर नई फिल्म बुलेट राजा की शूटिंग चल रही है। २०१२ में बेस्ट डायरेक्टर, २०१३ में फिल्म फेयर और नेशनल फिल्म फेयर अवार्ड विजेता तिग्मांशू धूलिया ने अमर उजाला से खास बातचीत में फिल्म, राजनीति और उसमें माफियाओं के दखल से लेकर प्रदेश के विकास के मुद्दे पर चर्चा की। पेश हैं प्रदीप अवस्थी से हुई बातचीत के मुख्य अंश।
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सवाल: आपकी फिल्में रीयल लाइफ कैरेक्टर पर केंद्रित होती हैं, बुलेट राजा में किसकी कहानी है?
तिग्मांशू: (सोच में डूबते हुए) बुलेट राजा मेरी पहली फिल्म है जो काल्पनिक है, लेकिन सच्चाई के नजदीक है। फिल्म में उत्तर प्रदेश की राजनीति में माफियाओं के दखल, बाहुबलियों की स्थिति, जातिपात का संघर्ष, आम आदमी की जिंदगी के लिए जद्दोजहद की कहानी है। इसमें इंसान के अंदर खत्म होते शौर्य को भी दर्शाया गया है। 
सवाल: बीहड़ फिर आपकी कहानी का हिस्सा बना है। डाकुओं से प्रभावित लगते हैं आप?
तिग्मांशू: (थोड़ा गुस्से में)
जिसे आप डाकू कहते हैं उसे मैं बागी कहता हूं। बीहड़ में तमाम ऐसे कैरेक्टर हैं जिन्होंने सामाजिक अत्याचार की वजह से बंदूक उठाई। वे डाकू पैदा नहीं हुए थे। न ही उनकी पृष्ठभूमि में डाकू थे। जुल्म की जब इंतहां हो गई तो जीने की ललक और बदले की भावना की वजह से उन्होंने बंदूक का रास्ता चुना। मुझे बागी की छवि अट्रैक्ट करती है।
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सवाल: इंसान के अंदर शौर्य खत्म हो रहा है, का मतलब?
तिग्मांशू: (बात पर जोर देते हुए)
शौर्य माने इंसान के अंदर का जज्बा जो किसी की भलाई के लिए जान देने तक से नहीं चूकता। बिना किसी की परवाह किए सच के लिए या अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाता है। ये चरित्र खत्म हो रहे हैं, क्योंकि समाज में कारपोरेट कल्चर घुस गया है। जहां बाजार का दखल हो गया वहां से इंसानी शौर्य खत्म हो रहा है। जय वीरू जैसे दोस्त नहीं रहे।
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सवाल: फिल्मों को नयापन देने वाले डायरेक्टर हैं आप, बुलेट राजा की खासियत क्या है?
तिग्मांशू: (आराम से बैठते हुए)
बुलेट राजा जय-बीरू की तरह दो दोस्तों की कहानी है। एक का रोल सैफ अली खान और दूसरे का रोल जिमी शेरगिल कर रहे हैं। कमांडो फेम विद्युत जमावत को फिल्म में चंबल का चौकीदार की तरह इंट्रोड्यूज किया गया है। ये एक आईपीएस अफसर की भूमिका में हैं। फिल्म की कहानी ईस्टर्न यूपी में लखनऊ के आसपास की है। सैफ और जिमी दो बाहुबलियों का चेहरा हैं। सोनाक्षी सिन्हा बंगाली लड़की के अहम किरदार में हैं।
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सवाल: यूपी में फिल्में बनाना कैसा अनुभव रहा। यूपी को किस नजरिए से देखते हैं?
तिग्मांशू: (विचार की मुद्रा में
)
पहली फिल्म हासिल इलाहाबाद में की थी। तब ऐसा लगा था कि दोबारा यहां फिल्में नहीं बनाउंगा। इलाहाबाद बनारस में पुलिस और प्रशासन ने बिलकुल मदद नहीं की। विश्वविद्यालय कैंपस का इस्तेमाल नहीं करने दिया गया था। तकलीफ हुई थी कि यूपी का होने के बाद भी लोग मदद नहीं कर रहे। इस बार माहौल बदला नजर आया। पुलिस प्रशासन का सहयोग मिल रहा है। लोग भी यहां के बहुत अच्छे हैं। फिल्म निर्माण को लेकर माहौल बदला है। राजनीति से बाहुबलियों और माफियाओं का हस्तक्षेप हटे तो प्रदेश और विकास करे।
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सवाल: कोई पसंदीदा अभिनेता, जिसके साथ काम करने की तमन्ना है, पर बात नहीं बनी?
तिग्मांशू:(थोड़ा भौंहों पर जोर देते हुए)
वैसे मैं किसी के पास काम के लिए जाता नहीं हूं। किसी खास अभिनेता को ध्यान में रखकर भी फिल्में नहीं बनाता। मेरी कहानी में जो फिट लगे उसे लेना पसंद करता हूं। फिर भी अजय देवगन ऐसे कलाकार हैं जिनके साथ काम करने की तमन्ना है।



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