प्रबल के घर पर
उसकी बूढ़ी मां और तीन छोटी बहनें हैं। उनके पास जीविकोपार्जन का कोई साधन
नहीं है। कोई भी व्यक्ति प्रबल के परिवार की मदद करना चाहे तो अमर उजाला
कार्यालय अथवा मोबाइल नंबर 08954886438 पर संपर्क कर सकता है। मददगार का नाम और सहायता राशि प्रकाशित की जाएगी।
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इटावा। गरीबी और बहरेपन से लाचार प्रबल ने मौत को गले लगा लिया। उसे क्या पता था कि मामूली-सी बीमारी उसे और उसके आश्रितों को जीवन भर का दर्द दे जाएगी। वह बोल तो सकता था मगर सुन नहीं सकता था। बहरेपन ने उसकी अच्छी भली नौकरी छीन ली। घर का एक मात्र पालनहार होने की वजह से वह वक्त से पहले बूढ़ी हो चुकी मां और तीन मासूम बहनों पर खुद को बोझ समझने लगा था। उसे फिक्र खाए जा रही थी कि बहन की शादी में लिए कर्ज की वजह से कहीं उसका छोटा सा घर भी न चला जाए।
एक दिन पहले ही वह अपना दर्द सुनाने ‘अमर उजाला’ दफ्तर आया था। बैग में रखी फाइल में से खुले पन्ने निकालकर उसने अपनी लिखीं गजलें, गीत और कविताएं दिखाई थीं। फिर एक प्रार्थना पत्र दे गया था, जिसमें मार्मिक आग्रह था कि वह इसी क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहता है। उसे मदद चाहिए। उसने बताया था कि सुन नहीं सकता, सिर्फ बोल सकता है। अपने बहरेपन की वजह से उसने हरेक बात के जवाब लिख कर दिए। लिखते समय उसके चेहरे पर झलकती सबसे अधिक पीड़ा जीवन में अब कुछ न कर पाने की थी।
भरथना के मंडी चौराहा निवासी सुंदरलाल प्रजापति एक धान मिल में मजदूरी कर अपनी पांच संतानों का पेट भरते थे। पांच साल पहले उनकी मृत्यु हो गई तो पत्नी पुष्पादेवी वह काम करने लगीं। संतानों में सबसे बड़ा होने के नाते 23 वर्ष के इंटर पास प्रबल प्रताप सिंह उर्फ रिंकू ने एक प्राइवेट फर्म में नौ हजार रुपये मासिक की नौकरी शुरू कर दी।
वर्ष 2010 में अचानक एक दिन उसके कान में खुजली होने लगी। उसने बगैर डाक्टरी सलाह के ईयर ड्रॉप और सरसों का तेल डाल लिया। तभी से वह बहरा हो गया। सैफई मेडिकल कॉलेज के अलावा उसने कई निजी चिकित्सकों को दिखाया लेकिन इतना पैसा नहीं था कि पूरा इलाज करा पाता। इसी बहरेपन ने उसकी नौकरी ले ली।
कर्ज लेकर उसने अपनी छोटी बहन की शादी की थी। कर्ज सूद समेत 80 हजार रुपये हो चुका था। उसे डर था कि कहीं कर्ज की वजह से दो कमरों वाला उसका छोटा सा घर भी न चला जाए। तब वह अपनी मां और छोटी बहनों को लेकर कहां जाएगा। तीन बहनें अभी अविवाहित हैं। पंद्रह वर्ष की शिवा और सत्रह साल की राजकुमारी एक फैक्ट्री में काम करती हैं। सप्ताहभर में करीब 400 रुपये मिल जाते हैं। बेटे की मुश्किलों से टूट चुकी मां वक्त से पहले बूढ़ी हो गई। अब वह मेहनत-मजदूरी नहीं कर पाती है।
प्रबल कुछ करना चाहता था मगर बहरापन आड़े आ जाता। बीते तीन सालों में उसने कई गीत, गजल और कविताएं लिख डालीं। उसे वह हमेशा अपने साथ रखता था। समाचार के माध्यम से उसकी मदद के लिए कोई पहल हो पाती, उससे पहले ही उसने अपना जीवन खत्म कर लिया। गुरुवार को जब उसके परिवार की दयनीय स्थिति निकट से जानने के लिए अमर उजाला टीम उसके घर पहुंची तो पता चला कि सुबह उसने कोई विषाक्त पदार्थ खाकर अपनी जान दे दी। घर का इकलौता चिराग बुझ जाने से मां रो-रोेकर बेहाल है। बहनें बिलख रही हैं। पूरा परिवार सदमे में है।
इटावा। गरीबी और बहरेपन से लाचार प्रबल ने मौत को गले लगा लिया। उसे क्या पता था कि मामूली-सी बीमारी उसे और उसके आश्रितों को जीवन भर का दर्द दे जाएगी। वह बोल तो सकता था मगर सुन नहीं सकता था। बहरेपन ने उसकी अच्छी भली नौकरी छीन ली। घर का एक मात्र पालनहार होने की वजह से वह वक्त से पहले बूढ़ी हो चुकी मां और तीन मासूम बहनों पर खुद को बोझ समझने लगा था। उसे फिक्र खाए जा रही थी कि बहन की शादी में लिए कर्ज की वजह से कहीं उसका छोटा सा घर भी न चला जाए।
एक दिन पहले ही वह अपना दर्द सुनाने ‘अमर उजाला’ दफ्तर आया था। बैग में रखी फाइल में से खुले पन्ने निकालकर उसने अपनी लिखीं गजलें, गीत और कविताएं दिखाई थीं। फिर एक प्रार्थना पत्र दे गया था, जिसमें मार्मिक आग्रह था कि वह इसी क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहता है। उसे मदद चाहिए। उसने बताया था कि सुन नहीं सकता, सिर्फ बोल सकता है। अपने बहरेपन की वजह से उसने हरेक बात के जवाब लिख कर दिए। लिखते समय उसके चेहरे पर झलकती सबसे अधिक पीड़ा जीवन में अब कुछ न कर पाने की थी।
भरथना के मंडी चौराहा निवासी सुंदरलाल प्रजापति एक धान मिल में मजदूरी कर अपनी पांच संतानों का पेट भरते थे। पांच साल पहले उनकी मृत्यु हो गई तो पत्नी पुष्पादेवी वह काम करने लगीं। संतानों में सबसे बड़ा होने के नाते 23 वर्ष के इंटर पास प्रबल प्रताप सिंह उर्फ रिंकू ने एक प्राइवेट फर्म में नौ हजार रुपये मासिक की नौकरी शुरू कर दी।
वर्ष 2010 में अचानक एक दिन उसके कान में खुजली होने लगी। उसने बगैर डाक्टरी सलाह के ईयर ड्रॉप और सरसों का तेल डाल लिया। तभी से वह बहरा हो गया। सैफई मेडिकल कॉलेज के अलावा उसने कई निजी चिकित्सकों को दिखाया लेकिन इतना पैसा नहीं था कि पूरा इलाज करा पाता। इसी बहरेपन ने उसकी नौकरी ले ली।
कर्ज लेकर उसने अपनी छोटी बहन की शादी की थी। कर्ज सूद समेत 80 हजार रुपये हो चुका था। उसे डर था कि कहीं कर्ज की वजह से दो कमरों वाला उसका छोटा सा घर भी न चला जाए। तब वह अपनी मां और छोटी बहनों को लेकर कहां जाएगा। तीन बहनें अभी अविवाहित हैं। पंद्रह वर्ष की शिवा और सत्रह साल की राजकुमारी एक फैक्ट्री में काम करती हैं। सप्ताहभर में करीब 400 रुपये मिल जाते हैं। बेटे की मुश्किलों से टूट चुकी मां वक्त से पहले बूढ़ी हो गई। अब वह मेहनत-मजदूरी नहीं कर पाती है।
प्रबल कुछ करना चाहता था मगर बहरापन आड़े आ जाता। बीते तीन सालों में उसने कई गीत, गजल और कविताएं लिख डालीं। उसे वह हमेशा अपने साथ रखता था। समाचार के माध्यम से उसकी मदद के लिए कोई पहल हो पाती, उससे पहले ही उसने अपना जीवन खत्म कर लिया। गुरुवार को जब उसके परिवार की दयनीय स्थिति निकट से जानने के लिए अमर उजाला टीम उसके घर पहुंची तो पता चला कि सुबह उसने कोई विषाक्त पदार्थ खाकर अपनी जान दे दी। घर का इकलौता चिराग बुझ जाने से मां रो-रोेकर बेहाल है। बहनें बिलख रही हैं। पूरा परिवार सदमे में है।